आज एक मित्र द्वारा भरी बाजार में प्रथम परिचयात्मक पंक्तियां Whatsapp पर भेजी और उसी पंक्तियों को पढ़ने के बाद मनःमस्तिष्क में निजी शिक्षकों के प्रति आम जन के दृष्टिकोण और व्याप्त आवरण पर कलम से शब्द ढल गए..
“शिक्षक की सार्वभौमिकता”
भरी बाजार में
पूछा गया
परिचय मेरा
मैंने कहा शिक्षक हूँ,
वो बोले सरकारी हो क्या?
इत्तेफ़ाक तो ऐसा अब
नहीं होना था..
पूछने वाले का
लेकिन शिक्षक बताने के बाद
कद सरकारी भी नहीं चाहिए था
शिक्षक की सार्वभौमिकता पर
प्रश्न पूछना…
मुझें अखरता है..
क्योंकि…
शिक्षक और शिक्षण कभी
अनुबंधित नहीं होते
शिक्षण सर्वव्यापक है
तो शिक्षक भी..
उसे किसी सीमाओं में
निहित करना
शिक्षा के कल्प और सत्ता
को निम्नता की ओर ले जाना है
शिक्षण का पवित्र पेशा
हो किसी भी रूप में
बस! वो अनगढ़ को
बड़े ही मनस्वी भाव से
साकार करता जाता हैं
बड़े अरमानों को लेकर
शिक्षा की अलख जगाते हैं
की ये कच्चे घड़े
परिपक्व होकर
कई घरों की बुनियाद बनेंगे
शिक्षा की
ज्योति को…
आज भी सरकारी
शिक्षकों की भांति
निजी शिक्षक भी
प्रज्वलित किए हुए हैं
बड़े मेहनती और होनहार होते हैं
निजी शिक्षक
अपने अनुभव और ज्ञान से
करते है आलोकमय
साथ ही बच्चो में
नैतिकता और
संस्कारों का भाव भरते हैं ll
✍️ राकेश सोलंकी आदरवाड़ा
व्याख्याता
“शिक्षक की सार्वभौमिकता और शिक्षा का पवित्र स्वरूप”
“शिक्षक की सार्वभौमिकता और शिक्षा का पवित्र स्वरूप”